Prachin Shyam Temple Mundru Sikar
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Ramchandra Swami (Pujari), Jagdish Agrawal (President), Vijendra Singh (Secretary)
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Near Dungri Ke Balaji, Mundru, Sikar, India, 332712
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581
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Prachin Shyam Temple Mundru Sikar is ancient shyam mandir in rajasthan and situated in shrimadhopur tehsil of sikar district.
मूंडरू के श्याम मंदिर में होती है दो शीशों की पूजा – सीकर जिले के श्रीमाधोपुर तहसील में स्थित मूंडरु कस्बा धार्मिक एवं ऐतिहासिक रूप से काफी प्रसिद्ध है.
कस्बे के बीचों-बीच श्याम बाबा का मंदिर है जिसे प्राचीन श्याम मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस श्याम मंदिर की विशेष बात यह है कि यहाँ पर जमीन के ऊपर और उसके नीचे अलग-अलग दो मंदिर हैं जिनमे बाबा श्याम के दो अलग-अलग शीशों की पूजा की जाती है.
इन दोनों मंदिरों में जमीन के नीचे मूल मंदिर स्थित है जिसमे जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं. मन्दिर का जीर्णोद्धार करते समय मूल मंदिर को इसके मौलिक स्वरुप में यथावत रखा गया.
जीर्णोद्धार के पश्चात मूल मंदिर के ऊपर बनाया हुआ नया मंदिर काफी भव्यता लिए हुए है. मंदिर के शिखर का निर्माण व शीशा जड़ाई का भव्य कार्य जनसहयोग से पूर्ण कराया गया.
इस मंदिर के अन्दर चारों तरफ काँच की सुन्दर कारीगरी मनमोहक है. मंदिर के मुख्य हाल एवं परिक्रमा स्थल में चारों तरफ दीवारों पर काँच से पौराणिक चित्रों को उकेरा गया है.
कहा जाता है कि भौगौलिक परिवर्तनों के कारण बाबा श्याम का मूल मन्दिर धरती के गर्भ में समा गया था. साठ के दशक में मूसलाधार वर्षा होने के कारण गाँव में एक जगह जमीन धँस जाने की वजह से गहरा गड्ढा हो गया जिसमे एक मन्दिरनुमा ढाँचा दिखाई दिया.
बाद में खुदाई करने पर वहाँ बाबा श्याम का प्राचीन मन्दिर अपने मूल स्वरुप में निकल आया. मंदिर और इसके गर्भगृह की चूने व पत्थर से निर्मित दीवारों की मोटाई व सीलन की गंध आज भी इस मंदिर के प्राचीन होने का प्रमाण देती है.
मन्दिर के विकास तथा रखरखाव के लिए वर्ष 2011-12 में श्री श्याम विकास समिति के नाम से समिति का रजिस्ट्रेशन कराया गया. वर्तमान में श्याम विकास समिति की देखरेख में स्वामी परिवार इस मंदिर में सेवा-पूजा का कार्य करता है.
मंदिर के प्रमुख उत्सवों में कार्तिक मास की एकादशी को श्याम जन्मोत्सव, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की दूज को मेले के रूप में रथयात्रा एवं श्रावण मास की ग्यारस को त्रिवेणी धाम से निशान पदयात्रा शामिल है.
साथ ही महीने की प्रत्येक ग्यारस को भजन संध्या आयोजित होती है तथा पौषबड़ा, अन्नकूट के अलावा शरदपूर्णिमा पर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ लगती है.
कस्बे के नाम एवं मंदिर की स्थापना के सम्बन्ध में कहा जाता है कि पुराने समय में मूंडरू कस्बे में स्थित एक ही पत्थर से निर्मित डूंगरी के पास पालकी नामक तालाब था.
इस डूंगरी के चारों तरफ एक नदी बहती थी जिसकी वजह से इस डूंगरी की आकृति एक मुद्रिका या मुंदरी (अंगूठी की तरह) के समान प्रतीत होती थी. डूंगरी की आकृति मुंदरी नुमा होने की वजह से इसे मुंदरी नाम से जाना जाता था.
पंद्रहवीं शताब्दी के अंतिम दशक में खंडेला के राजा रायसल के प्रपौत्र एवं हरीराम के पुत्र रानोली के ठाकुर हरदेराम सिंह शिश्यु रानोली से मुंदरी डूंगरी आए.
इन्होंने 1595 ईस्वी (विक्रम संवत् 1652) में इस डूंगरी से दक्षिण दिशा में एक कस्बे की स्थापना करवाई. मुंदरी नामक पहाड़ी के निकट होने के कारण इस कस्बे का नाम मूंडरू पड़ा.
ऐसा कहा जाता है कि ठाकुर हरदेराम को एक रात स्वपन में किसी स्थान पर बर्बरीक का शीश दबा होने का आभास हुआ.
बाद में उस स्थान पर खुदाई करवाने पर वहाँ से बर्बरीक का शीश रूपी पत्थर निकला. ठाकुर साहब ने 1599 ईस्वी (विक्रम संवत् 1656) में खुदाई वाली जगह पर शीश की स्थापना करवाकर श्याम मंदिर का निर्माण करवाया.
अगर आप ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल देखने का शौक रखते हैं तो आपको एक बार श्याम मंदिर एवं मुंदरी पहाड़ी को जरूर देखना चाहिए.
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मूंडरू के श्याम मंदिर में होती है दो शीशों की पूजा – सीकर जिले के श्रीमाधोपुर तहसील में स्थित मूंडरु कस्बा धार्मिक एवं ऐतिहासिक रूप से काफी प्रसिद्ध है.
कस्बे के बीचों-बीच श्याम बाबा का मंदिर है जिसे प्राचीन श्याम मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस श्याम मंदिर की विशेष बात यह है कि यहाँ पर जमीन के ऊपर और उसके नीचे अलग-अलग दो मंदिर हैं जिनमे बाबा श्याम के दो अलग-अलग शीशों की पूजा की जाती है.
इन दोनों मंदिरों में जमीन के नीचे मूल मंदिर स्थित है जिसमे जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं. मन्दिर का जीर्णोद्धार करते समय मूल मंदिर को इसके मौलिक स्वरुप में यथावत रखा गया.
जीर्णोद्धार के पश्चात मूल मंदिर के ऊपर बनाया हुआ नया मंदिर काफी भव्यता लिए हुए है. मंदिर के शिखर का निर्माण व शीशा जड़ाई का भव्य कार्य जनसहयोग से पूर्ण कराया गया.
इस मंदिर के अन्दर चारों तरफ काँच की सुन्दर कारीगरी मनमोहक है. मंदिर के मुख्य हाल एवं परिक्रमा स्थल में चारों तरफ दीवारों पर काँच से पौराणिक चित्रों को उकेरा गया है.
कहा जाता है कि भौगौलिक परिवर्तनों के कारण बाबा श्याम का मूल मन्दिर धरती के गर्भ में समा गया था. साठ के दशक में मूसलाधार वर्षा होने के कारण गाँव में एक जगह जमीन धँस जाने की वजह से गहरा गड्ढा हो गया जिसमे एक मन्दिरनुमा ढाँचा दिखाई दिया.
बाद में खुदाई करने पर वहाँ बाबा श्याम का प्राचीन मन्दिर अपने मूल स्वरुप में निकल आया. मंदिर और इसके गर्भगृह की चूने व पत्थर से निर्मित दीवारों की मोटाई व सीलन की गंध आज भी इस मंदिर के प्राचीन होने का प्रमाण देती है.
मन्दिर के विकास तथा रखरखाव के लिए वर्ष 2011-12 में श्री श्याम विकास समिति के नाम से समिति का रजिस्ट्रेशन कराया गया. वर्तमान में श्याम विकास समिति की देखरेख में स्वामी परिवार इस मंदिर में सेवा-पूजा का कार्य करता है.
मंदिर के प्रमुख उत्सवों में कार्तिक मास की एकादशी को श्याम जन्मोत्सव, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की दूज को मेले के रूप में रथयात्रा एवं श्रावण मास की ग्यारस को त्रिवेणी धाम से निशान पदयात्रा शामिल है.
साथ ही महीने की प्रत्येक ग्यारस को भजन संध्या आयोजित होती है तथा पौषबड़ा, अन्नकूट के अलावा शरदपूर्णिमा पर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ लगती है.
कस्बे के नाम एवं मंदिर की स्थापना के सम्बन्ध में कहा जाता है कि पुराने समय में मूंडरू कस्बे में स्थित एक ही पत्थर से निर्मित डूंगरी के पास पालकी नामक तालाब था.
इस डूंगरी के चारों तरफ एक नदी बहती थी जिसकी वजह से इस डूंगरी की आकृति एक मुद्रिका या मुंदरी (अंगूठी की तरह) के समान प्रतीत होती थी. डूंगरी की आकृति मुंदरी नुमा होने की वजह से इसे मुंदरी नाम से जाना जाता था.
पंद्रहवीं शताब्दी के अंतिम दशक में खंडेला के राजा रायसल के प्रपौत्र एवं हरीराम के पुत्र रानोली के ठाकुर हरदेराम सिंह शिश्यु रानोली से मुंदरी डूंगरी आए.
इन्होंने 1595 ईस्वी (विक्रम संवत् 1652) में इस डूंगरी से दक्षिण दिशा में एक कस्बे की स्थापना करवाई. मुंदरी नामक पहाड़ी के निकट होने के कारण इस कस्बे का नाम मूंडरू पड़ा.
ऐसा कहा जाता है कि ठाकुर हरदेराम को एक रात स्वपन में किसी स्थान पर बर्बरीक का शीश दबा होने का आभास हुआ.
बाद में उस स्थान पर खुदाई करवाने पर वहाँ से बर्बरीक का शीश रूपी पत्थर निकला. ठाकुर साहब ने 1599 ईस्वी (विक्रम संवत् 1656) में खुदाई वाली जगह पर शीश की स्थापना करवाकर श्याम मंदिर का निर्माण करवाया.
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